लाइब्रेरी में जोड़ें

साहित्य का धंधा

साहित्य का धंधा
वाद विवादों में
निरंतर उलझता 
गया
कविता की शक्ल में
आदमी
कहानियां
लिखने लगा
साहित्य की उपलब्धियां
आलोचना में
बयान की जा रही
जो कविता कभी
हृदय का हार हुआ
करती थी
अब स्कूल कालेज
यूनिवर्सिटी की 
किताबों में सिमटकर
रह गयी है
हिंदी राजभाषा होने के
बावजूद
अंग्रेजी के संग
अकेली हो गई है
कविता 
बकवास होती
जिंदगी का आइना
बन रही है
इसके नाम पर
रोज पुरस्कार बंटते
अखबार में
कवियों के फोटो
अरी प्रिया
अब क्यों नहीं
छपते
वे बार - बार
पुरानी बातें ही करते
दिल्ली में ही आकर
मैनेजर पांडेय के
घर के पास
अब सारे कवि रहते
यमुना को
सब देखते रहते
चुप बहते

   9
2 Comments

शानदार

Reply

अदिति झा

15-Jan-2023 07:46 PM

Nice 👍🏼

Reply